Raksha Bandhan Kyu Manaya Jata Hai: दोस्तो, जैसा कि आप जानते है कि हमारे भारत देश मे कई सारे त्यौहार मनाये जाए है और उन्ही में से एक त्यौहार है ” रक्षाबन्धन ” ।
ये दो शब्दों से मिलकर बना है – रक्षा और बंधन। संस्कृत भाषा के अनुसार रक्षा का अर्थ होता है – रक्षा प्रदान करना और बंधन का अर्थ होता है – एक गांठ , एक डोर जो रक्षा प्रदान करे।
इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध कर उनकी लम्बी आयु और सुख समृद्धि के लिए कामना करती है और भाई अपनी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेते है।
आप तो जानते ही है हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई कथा जरूर होती है और इस त्यौहार की भी कुछ पौराणिक और महाभारत कथा है। इसके अलावा कुछ ऐतिहासिक कहानी है। जिससे मालूम पड़ता है कि यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है।
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Raksha Bandhan Kyu Manaya Jata Hai in Hindi – Raksha Bandhan Essay in Hindi
तो आइए जानते है कि इस त्यौहार को मनाने की पहली कथा –
पहली कथा – Raksha Bandhan Kyu Manate Hai
1- राजा बलि और माँ लक्ष्मी का रक्षाबन्धन की कथा
पुराणों के अनुसार माँ लक्ष्मी जी का बलि को राखी बांधने से जुड़ा हुआ है। तो चलिए जानते है इस कथा के बारे में।
आप तो जानते ही है कि असुरों और दानवों में कई वर्षों से अमृत मंथन के लिए युद्ध चल रहा था। इस युद्ध के कारण पूरे पृथ्वीलोक पर अफरा तफरी मच गई थी।
इस बात को देखते हुए एक बार दानवों के राजा बलि ( प्रह्लाद के पौत्र थे जो भगवान शिव और विष्णु जी के परम भक्त थे।
जिन्होंने शिव जी की घोर तपस्या करके अपनी कई इच्छायें पूरी की थी। ) ने अग्नि के सामने 101 यज्ञ पूरा करने का अनुष्ठान किया और भगवान के सामने एक मनोकामना रखी कि , उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो।
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– विष्णु जी ने लिया वामन अवतार
जब भगवान इंद्र को इस मनोकामना के बारे में मालूम पड़ा तो इंद्र घबराहट के मारे तुरन्त भगवान विष्णु जी के पास गए और उनसे कहने लगे – हे प्रभु!
अगर राजा बलि की मनोकामना पूरी हो गयी तो पूरा पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक उसी के हाथ मे आ जायेगा और दानवों की वजह से सभी जगह अफरा – तफरी मच जयेगी। अब आप ही इस दुविधा से हमे बचा सकते है।
यह बात सुनकर भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर ब्राह्मण रूप धारण कर राजा बलि के पास भिक्षा लेने के लिए पहुँचते है। भिक्षा में वह तीन पग भूमि मांगते है।
राजा बलि अपने वचन पर अटल रहते हुए उन्हें तीन पग भूमि दान में दे देते है।
– विष्णु जी ने प्राप्त की तीन पग भूमि
यह सुनकर ब्राह्मण रूपी विष्णु ने विराट रूप धारण कर लिया और पहले पग में वामन रूपी विष्णु ने स्वर्ग को नाप लिया और दूसरे पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया।
अब बचा तीसरा पग। यह देख बलि सोच में पड़ गया और सोचने लगा कि अगर वचन पूरा नही किया तो यह इनका अपमान होगा। तो राजा बलि ने तुरन्त ब्राह्मण रूपी विष्णु जी के सामने अपने सिर को नीचे झुकाकर कहा – हे गुरु देव !
आप मेरे सिर पर अपना पग रख दीजिए।
विष्णु जी ने तुरन्त उसके सिर पर अपना पग रख दिया।
बलि द्वारा अपने वचन को पूरा करने पर विष्णु जी अत्यन्त खुश हो जाते है और बलि से कहते है – बलि! मैं तुम्हारे वचन से बहुत प्रसन्न हुआ। मैं तुम्हे एक वरदान देता हूँ। जो चाहो सो मांग लो।
– राजा बलि ने मांगा वरदान
तब बलि ने बड़े आदर भाव से कहा – हे प्रभु! मैं आपको रात – दिन अपने सामने देखना चाहता हूँ। इस वचन का पालन करते हुए भगवान विष्णु को राजा बलि का द्वारपाल बनना पड़ा।
– माँ लक्ष्मी ने ऐसे धारण किया नाग कन्या रूप
वहीं दूसरी तरफ माँ लक्ष्मी जी विष्णु जी के न होने से बहुत परेशान रहने लगी। तब भगवान शिव जी ने उन्हें एक उपाय दिया कि आप राजा बलि को अगर तुम किसी बंधन में बांध लो तो शायद विष्णु जी वापस आ सकते है।
भगवान शिव ने अपने वासुकी नाग को माँ लक्ष्मी जी के साथ जाने का आदेश दिया।
नाग को लेकर माँ लक्ष्मी एक ‘नाग कन्या का रूप’ धारण करके राजा बलि के पास पहुँचती है और उनसे सहायता मांगती है और जो नाग उनके साथ आये थे वे एक रक्षा बंधन सूत्र में बदल जाते है।
– राजा बलि की कलाई पर बाँधा वासुकी रक्षा सूत्र
नाग कन्या वह रक्षा सूत्र बलि के कलाई पर बाँध देती है। तब राजा बलि उनसे कहते है – मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा करूँगा और मन चाहा फल प्रदान करूँगा।
तब माँ लक्ष्मी अपने विशाल रूप में प्रकट हो जाती है और उनसे भगवान विष्णु जी को माँगती है।
राजा बलि तुरन्त उनकी इच्छा पूरी कर देते है और कहते है – आज से जो भी स्त्री किसी भी पुरुष को वासुकी नाग रूपी रक्षा सूत्र बाँधकर मन से भाई मानकर अपनी रक्षा का वचन मांगेगी तो हर भाई अपनी बहन की रक्षा के बंधन में बंध जाएगा।
उस दिन श्रावण माह की पूर्णिमा का दिन था। इसलिये हर वर्ष भाई की कलाई पर वासुकी नाग रूपी रक्षा सूत्र बांधकर रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाने लगा।
दूसरी कथा – Raksha Bandhan Kisliye Manaya Jata Hai
2 – द्रौपदी और भगवान कृष्ण की रक्षाबन्धन की कथा
भगवान कृष्ण द्वारा शिशुपाल को मारकर इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई तो चलिए जानते है कि यह कौन था?
शिशुपाल कौरवों और पांडवों का भाई था, जो भगवान कृष्ण की बुआ का लड़का और वासुदेव की बहन का पुत्र था।
– शिशुपाल का विचित्र जन्म
शिशुपाल राजा दमघोष का पुत्र था। जब शिशुपाल का जन्म हुआ, तब वह बहुत विचित्र प्रकार का था। जन्म के समय उसकी तीन आँखे और चार हाथ थे।
शिशुपाल को देखकर लोग कई तरह की बाते किया करते थे और कहते थे कि यह एक राक्षस है। इसे जितना जल्दी हो सके मार देना चाहिए।
– शिशुपाल की आकाशवाणी में क्या कहा
इस बात से उसके माता – पिता बहुत परेशान रहने लगे। एक दिन उन्होंने सोचा कि यह बच्चा राक्षस है हमे इसे मार देना चाहिए।
वे दोनों जैसे ही बच्चे को मारने जाते है तभी एक आकाशवाणी होती है कि ” इस बच्चे का त्याग मत करो। जब सही समय आएगा तो ये बिल्कुल आम इंसान की तरह हो जाएगा,
लेकिन जिस व्यक्ति की गोद मे बैठने के बाद इसकी आँख और हाथ गायब हो जाएंगे। उसी व्यक्ति के हाथों से इसकी मृत्यु भी होगी। ”
इस आकाशवाणी से उनकी चिंता तो दूर हो जाती है लेकिन उसकी मृत्यु की चिंता सताने लगती है।
ऐसे ही एक बार भगवान कृष्ण अपनी बुआ के घर पर गए और उस बच्चे को गोद मे उठा लिया। बच्चे को गोद मे उठाते ही उसकी आँख और हाथ गायब हो गए।
यह देख उसकी माँ बहुत खुश हो जाती है लेकिन मृत्यु के डर से वह भगवान कृष्ण के सामने हाथ जोड़कर बड़ी नम्रता से कहती है – हे कृष्ण! तुम मेरे पुत्र शिशुपाल का वध मत करना।
– भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को दी 100 गलतियो की माफी
भगवान कृष्ण को अपनी बुआ का दुख देखा नही गया और उनसे कहा कि विधि का विधान कोई नही रोक सकता। जो होना है वह होकर ही रहेगा। अगर इसने 100 गलतियों से एक भी ज्यादा गलती की, तो मैं इसे मृत्यु दंड दूँगा।
धीरे – धीरे समय बीतता गया। अब शिशुपाल बड़ा हो गया और एक राज्य का एक राजा बन गया। वह बहुत घमंडी और क्रोधी था। आये दिन प्रजा पर अत्याचार करता रहता था। ऐसे ही धीरे – धीरे अपनी गलतियां बढ़ाता गया।
– शिशुपाल ने किया भगवान कृष्ण का अपमान
एक बार जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया गया तो उन्होंने राजसूय यज्ञ करवाया। इस यज्ञ में उन्होंने अपने रिश्तेदार , प्रतापी राजा , शिशुपाल और भगवान कृष्ण को बुलाया।
उस भरी सभा मे शिशुपाल ने भगवान कृष्ण का ढंग से अपमान किया। उसका कहना था कि जब इस यज्ञ में इतने बड़े – बड़े राजाओं को बुलाया गया है तो इस छोटे से ग्वाले को क्यों बुलाया।
उसकी बात सुनकर कृष्ण जी चुपचाप सब कुछ सुनते रहे।
– सुदर्शन चक्र से कैसे किया शिशुपाल का वध
लेकिन जब उसकी 100 से ऊपर गलती पार हुई तो कृष्ण जी ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल पर प्रहार कर दिया और उसी वक्त उसकी मृत्यु हो गयी।
चक्र चलाते समय कृष्ण जी की उंगली में चोट लगने के कारण खून बहने लगा। यह देखकर वहाँ पर उपस्थित द्रौपदी ने अपनी साड़ी का चीर फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बाँध दिया।
– भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को दिया रक्षा का वचन
यह देख भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि बहन द्रौपदी! आज तुमने मेरी रक्षा की। इसके लिए बहुत धन्यवाद।
आज के बाद मैं भी तुम्हारी रक्षा करने का वचन देता हूँ।
तभी तो जब कौरवों ने द्रौपदी का चीर हरण किया तो भगवान कृष्ण ने उनकी साड़ी को लम्बा कर द्रौपदी की रक्षा की।
उस दिन श्रावण माह का दिन था और तभी से द्वापुर युग से रक्षाबन्धन का पर्व मनाते आ रहे है।
तीसरी कथा – Raksha Bandhan Kyu Manaya Jata Hai
3 – भगवान इंद्र और इंद्राणी की रक्षाबन्धन की कथा
जैसा कि आप जानते है कि देवता और असुरो में हमेशा से युद्ध चलता आ रहा है। तो आइए जानते है कि यहाँ से रक्षाबन्धन की शुरुआत कैसे हुई।
– देवता और असुरों का युद्ध
एक बार देवता और असुरों में भयंकर युद्ध चल रहा था। यह युद्ध 12 वर्षो तक चला। इस युद्ध मे देवता की हार और असुरों की जीत हुई। असुरों ने तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था।
इस बात से भगवान इंद्र बहुत उदास हो गए और इस समस्या के समाधान के लिए भगवान इंद्र, देवता के गुरु बृहस्पति के पास गए और उनसे कहने लगे कि,
हे प्रभु! असुरों ने पूरे लोक पर अपना अधिकार जमा लिया। अब सब जगह त्राहि मच जाएगी। आप तो सिर्फ आप ही हमे इस परेशानी से बाहर निकाल सकते है।
– मन्त्र उच्चारण से बनी रक्षा पोटली
बृहस्पति ने नम्र भाव से इंद्र से कहा कि, मन्त्र उच्चारण के साथ रक्षा का विधान करो और श्रावण माह की पूर्णिमा को रक्षा विधान का संस्कार शुरू करो।
पूर्णिमा के दिन इंद्र ने मन्त्र उच्चारण से रक्षा पोटली तैयार की। इस रक्षा पोटली में मन्त्रो से कई शक्तियां डाली गई।
इंद्र ने यह पोटली अपनी पत्नी शचि ( जिन्हें इंद्राणी के नाम से जाना जाता है। ) को दे दी। इंद्राणी ने यह रक्षा पोटली भगवान इंद्र के दाहिने हाथ पर बाँध दी।
पोटली बांधकर भगवान इंद्र असुरों से युद्ध करने के लिए चले गए और इस युद्ध के अंत मे भगवान इंद्र की जीत हुई।
कहा जाता है कि इंद्राणी द्वारा भगवान इंद्र के हाथ पर रक्षा पोटली बांधने की वजह से इंद्र की जीत हुई।
इसी वजह से कई स्त्रियां अपनी रक्षा के लिए अपने पति को राखी बाँधती है।
रक्षाबन्धन कब मनाया जाएगा – Raksha Bandhan Celebration Date
हिन्दू पंचांग के अनुसार 2021 के अनुसार रक्षाबन्धन का पर्व 22 अगस्त रविवार को मनाया जाएगा। यह पर्व हर वर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा शुक्ल पक्ष को बड़े हर्ष – उल्लास से पूरे भारत देश मे मनाया जाता है।
रक्षाबन्धन का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 21 अगस्त की शाम 03 बजकर
45 मिनट से प्रारम्भ
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 22 अगस्त की शाम 05
बजकर 58 मिनट तक
शुभ मुहूर्त – 22 अगस्त रविवार सुबह 05 : 50 बजे से
शाम 06 : 03 बजे तक
रक्षाबन्धन के लिए दोपहर का उत्तम समय – 22 अगस्त को 01 : 44 बजे से शाम 04 : 23 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 : 04 से 12 : 58 मिनट तक
अमृत काल – सुबह 09 : 34 से 11 : 07 तक
भद्र काल – 23 अगस्त 2021 सुबह 05 : 34 से 06 : 12 तक
रक्षाबन्धन पर भगवान की पूजा करने की विधि – Raksha Bandhan Kaise Manaya Jata Hai
इस पवित्र पर्व के दिन सुबह नहा – धोकर एक पूजा की थाल सजाए। इस थाल में रोली , चंदन , अक्षत , दही , मिष्ठान और राखी रखकर घी का दीपक जलाकर पूजा स्थल पर रख दे फिर धूप जलाकर भगवान का स्मरण करें।
रक्षाबन्धन पर भाई को राखी बाँधने की विधि
1 – जो थाली पूजा स्थल पर रखी थी उस थाली को उठाकर उस जगह पर रख दे जहां पर आप अपने भाई को राखी बाँधेगी।
2 – उसके बाद जिस स्थान पर आप भाई को राखी बाँधेगी वहां पर आटे से एक चाक बनाये।
3 – सबसे पहले भाई के सिर को एक छोटे से कपड़े या रुमाल से ढक ले।
4 – फिर भाई के माथे पर रोली लगाये और उसके ऊपर अक्षत लगाए, अक्षत का मतलब है चावल, यानी जो अधूरा न रहे। उसके बाद भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बाँधकर मिठाई खिलाएं।
5 – मिठाई खिलाने के बाद भाई की आरती करें।
6 – रखी बंधवाने के बाद भाई अपनी बहन के पैर छूकर आशीर्वाद लेते है और बहन को उपहार व धन देते है।
7 – इस दिन बहन अपने भाई की लंबी उम्र के लिए उनकी तरक्की के लिए कामना करती है।
राखी बाँधते समय इस मंत्र का जाप करे
येन बद्धो बलि: राजा दनवेंद्रो महाबल
तेन त्वमपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल
इसका अर्थ है , एक बहन रक्षा सूत्र बाँधते वक्त कहती है कि जिस रक्षा सूत्र से महान राजा बलि को बाँधा गया था। उसी सूत्र से मैं तुम्हे बाँधती हूँ।
हे रक्षे ( राखी ) तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी विचलित मत होना। इसी कामना के साथ बहन अपनी भाई की कलाई पर राखी बाँधती है।
आशा करते हैं कि आपको ये लेख Raksha Bandhan Kyu Manaya Jata Hai पसंद आया होगा और Raksha Bandhan Essay in Hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और Raksha Bandhan History के बारे में भी आपको पता चल गया होगा .
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